सिंघाड़ा की खेती कैसे करें -नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस लेख में सिंघाड़ा की खेती कैसे करें इसके बारे में आपको पुरी जानकारी विस्तार से बताने वाले आप इस पोस्ट को एक बार शुरू से अंत तक ध्यान पूर्वक जरूर पढ़ें
आज के इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए भारतीय कृषि उपज फलों से संबंधित ‘ सिंघाड़ा की खेती कैसे करें’ के बारे में विस्तार से जानेंगे। आप इस पोस्ट को ध्यानपूर्वक जरूर पढ़े।
सिंघाड़ा की खेती सर्दी के मौसम में की जाती है। छिंदवाड़ा में कई प्रकार के पोषक तत्व पाए जाते हैं। स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता हैं और इस फसल का अच्छा उत्पादन करके पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और कमाई भी कर सकते हैं। सिंघाड़ा एक नकदी फसल है और जली पौधा है इस पौधे की जड़े पानी के अंदर रहती है और यह कई पोगो रोगों के लिए औषधि के रूप में कारगर साबित होता है।
सिंघाड़ा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
सिंघाड़ा एक उष्णकटिबंधीय जलवायु की फसल है। खेतों में 1 से 2 घंटे के लिए पानी भरा होना आवश्यक होता है क्योंकि यह एक जलीय फसल हैं। इससे फसल की बेले होती है और पानी में रहती है।
सिंघाड़ा की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
जब आप किसी प्रकार की फसल का उत्पादन करते हैं तो सबसे पहले फसल के अनुरूप मिट्टी का होना बहुत ही आवश्यक होता है। सिंघाड़े का पौधा एक जलीय पौधा होता है। जली पौधा होने के कारण है थोड़ी मिट्टी आवश्यक होती है। जलाशय में मिट्टी सामान्य से ज्यादा भुरभुरी होती है तो सिंघाड़ा बेहतर उपज देता है।
खेतों में ह्यूमस की मात्रा अच्छी होनी चाहिए।
सिंघाड़ा की खेती करने के लिए क्षेत्र में बलुई दोमट मिट्टी आवश्यक हैं मिट्टी का पीएच मान 6से 8 के बीच में होना चाहिए।
सिंघाड़े की फसल बुवाई का सही समय
इस फसल के बोने के लिए पाली की सख्त आवश्यकता होती है। इसलिए आप वर्षा ऋतु में इस फसल की बुवाई कर सकते हैं। आमतौर पर जून और जुलाई के महीने में सिंघाड़े की खेती शुरू कर दी जाती है। मिट्टी में गड्ढे बनाकर भी सिंघाड़े की खेती की जा सकती है। 6 महीने की यह सिंघाड़े की फसल अच्छी पैदावार और मुनाफा देती है।
सिंघाड़े की खेती के लिए उर्वरक
जब आप किसी तरह की फसल का उत्पादन करते हैं तो उस फसल के लिए मिट्टी की उर्वरक क्षमता अधिक होनी आवश्यक होती है। हालांकि इस फसल में खाद की जरूरत बहुत कम पड़ती है। इस फसल को बोने से पहले प्रति हेक्टेयर की जमीन पर 8 से 10 टन गोबर की खाद डाल दें। क्षेत्र में नाइट्रोजन पोटाश और फास्फोरस की मात्रा भी डाल दें।
नोट : इस फसल की सही जानकारी आप अपने गांव या पंचायत या जिला स्तर पर किसी कृषि विशेषज्ञ या कृषि विशेषज्ञ आवाज जानकारी प्राप्त करें।
सिंघाड़े की खेती के लिए उन्नत किस्में
सिंघाड़े की खेती के लिए दो प्रकार की किस में देखने को मिलती है जो इस प्रकार है-
लाल छिलके वाली
इस किस्म की उन्नत किस्म या जाति वीआर wc1 और वीआरडब्ल्यू सी 2 हैं। इस किस्म को बहुत ही कम उगाया जाता है, क्योंकि इस किस्म बहुत ही जल्दी काली पड़ने लगती है और उसका बाजार में भाव नहीं मिल पाता है।
हरे छिलके वाली
व्यापारी रूप से यह फसल काफी प्रचलित होती है। इसे किस व की फसल लंबे समय तक ताजी रहती है और बाजार में काफी मांग भी है और बिक्री भी है।
इस किस्म की फसल की तोड़ाई 120 से 34 दिनों के अंदर हो जाती है।
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सिंघाड़ा की खेती में होने वाले रोग और किट
सिंघाड़ा की खेती में अधिकतम नीला भृंग, भृंग, लाल खजूर नाम का किट का खतरा होता है। जो इस फसल को 20 से 40% तक कम कर देता है। इस किट के अलावा लोहिया और दहिया रोग का खतरा होता है। इस रोग से बचाव के लिए हमें कीटनाशक का उपयोग करना चाहिए।
सिंघाड़े की खेती में लागत और कमाई
हरे फल -80 से 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर
सुखी गोटी -18 से 20 क्यूविंट प्रति हेक्टेयर
कुल लागत -50000 रूपये के लगभग प्रति हेक्टेयर
इस फसल की कुल आमदनी निकाल कर प्रति हेक्टेयर ₹100000 तक कमा सकते हैं सिंघाड़े को आप बजार में बेच सकते हैं।
निष्कर्ष
दोस्तों आज हमने आपको इस पोस्ट के माध्यम से सिंघाड़े की खेती कैसे करें के बारे में विस्तार से पूरी जानकारी उपलब्ध करवाई है हमें उम्मीद है कि आपको यह पोस्ट बहुत ही पसंद आई होगी और आप इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों के साथ शेयर करें और उन्हें सिंघाड़े के बारे में बताएं इस फसल से होने वाले लाभ के बारे में जानकारी दें।