Nil ki kheti kaise kare: नील की खेती के बारे में साधारण जनकारी नील की खेती सबसे पहले भारत में की गई,भारत में नील को उगाया गया, नील की खेती को आज रंजक के रुप में भी की जाती है, नील की खेती या नील को काफ़ी साल पहले से उगाया जा रहा हैं, लेकिन जब अंग्रेजों का शासन था तब नील खेती को बंद कर दिया गया था। हालंकि वर्तमान में रसायनिक पदार्थों की उपयोग से नील को बनाया जा रहा है।
आज के दौर में बाजार में प्राकृतिक नील की मांग तेजी से बढ़ रही है।नील की खेती जमीन के लिए अधिक लाभदारी होती है क्योंकि यह मिट्ठी को उपजाऊ बनाता है।
नील के पौधे की ऊंचाई एक से दो मीटर होती है, इसके फूल का रंग बैंगनी और गुलाबी होता है, इसके पौधे पुरी तरह जलवायु पर निर्भर होते है, जलवायु के आधर पर एक से दो वर्ष तक उत्पादन कर सकते है। आज हम आपको इस पोस्ट के जरिए नील की खेती कैसे करें, और इसके लाभ के बारे में Detail में बताएंगे,तो आप इस पोस्ट को ध्यानपूर्वक जरूर पढ़े।
नील की खेती के लिए उपयोग मिट्ठी
इस फसल की खेतो करने के लिए आपको बलुई दोमट मिट्ठी की जरूरत होती है,और भूमि में उचित जल भराव नहीं होना आवश्यक है, जल भराव होने पर इसकी खेती नहीं की जा सकती हैं।
नील की खेती के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान
नील की खेती करने के लिए इसके पौधे को अधिक वर्षा की जरूरत होती हैं क्योंकि इसके पौधे बारिश के मौसम में अच्छा विकास करते है।अधिक गर्मी और सर्दी में इस फसल का नुकसान होता है इसके पौधे को सामान्य तापमान की जरुरत होती है।
नील की खेती की अच्छी फसल लेने के लिए उष्ण और शीतोष्ण जलवायू की अवश्यकता होती है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती हैं और गुणवत्ता अच्छी रहती है।
नील की खेती करने के लिए खेतों की तैयारियां
अपको नील की खेती करने और अच्छे उत्पादन के लिए खेत को अच्छे से गहरी जुताई कर दी जाती है, जुताई के बाद खेत को थोड़े दिनों की लिए खुल्ला छोड़ देवे, गोबर खाद खेतों में डाल देना चाहीए, रोटावेटर से मिट्ठी को अच्छे से जुताई कर दिया जाता हैं जिससे मिट्ठी और खाद अच्छे से मिल जाता है, इसके बाद खेतों के पानी छोड़ दिया जाता हैं, खेत की मिट्ठी सूखने के बाद पाटा लगाकर जमीन को समतल किया जाता हैं।
नील की खेती के लिए बीजों की रोपाई विधि और समय
नील की खेती के लिए खेत में बीज की रोपाई की जाती है, बीजों को ड्रिल मशीन के द्वारा रोपाई होती है,इसके बीजों को रोपाई सिंचित जगहों पर अप्रैल माह में की जाती हैं,और असिंचित जगहों पर बारिश के मौसम में की जाती है, नील की खेती कम समय में तैयार हो जाती है,और उत्पादन में अच्छी पैदावार होती है।
नील की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था
नील की खेती करने के लिए कम सिंचाई की आवश्यकता होती है, बारिश के मौसम से पहले इसके पौधों को 2 से 3बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, अगर बिजो की रोपाई बारिश में की जाए तो एक दो बार सिंचाई की जरूरत होती है।इस फसल की कटाई 3 से 4 माह में की जाती है।
नील की खेती के लिए उर्वरक की मात्रा
नील की खेती करने से पहले खेतों को तैयार करते समय प्रयाप्त मात्रा में उर्वरक डाल देना चाहिए, गोबर खाद खेत की उर्वरक श्रमता को बढ़ाता है , कंपोस्ट खाद भी डाल सकते हैं, इसके पौधे स्वयं ही नाइट्रोजन की जररूत पूरी कर लेते है।जिससे उन्हें रसायनिक उर्वरक की अवश्यकता नहीं होती है ।
खरपतवार नियंत्रण
नील की खेती करते समय फसल के साथ अनावाश्यक पौधे भी उग जातें है,तो उनको खेतों से हटाना होता है ,खेत से बहार फेक दिया जाता है, इस फसल को 2 बार निराई गुणाई की जरूरत होती हैं, दोनो बार गुड़ाई के बिच का अंतराल 20 से 25 दिनों का होता है।नील के पौधे में खरपतवार नियंत्रण के लिए प्राकृतिक विधि का उपयोग किया जाता है।
नील के पौधे की कटाई
इसके पौधे 3 से 4 माह में कटने के लिए तैयार हो जाते हैं हालंकि इसका पोधा एक बार लगाने के बाद कई बार काटा जा सकता है, नील के पौधे के कटने के बाद उन्हे छाया में सुखाया जाता हैं, पत्तियों को सूखने के बाद बाजार में बेच दिया जाता है, इन सूखे पत्ते की गहाई कर इनसे नील तैयार किया जाता है इसके अलावा हरी पत्तियां से भी नील का निर्माण किया जाता है,जिसके लिए पत्तियों को काटकर तुरंत ही बाजार में बेच दिया जाता है लेकिन हरी पत्तियां का भाव सुखी पत्तियों की अपेक्षा बहुत कम होता है।
नील की फसल से प्राप्त पैदावार और लाभ
वर्तमान में बिहार के किसानों द्वारा एक एकड़ खेती से सुखी हुई 7 क्विंटल के लगभग फसल ली गई है, जिनका बाजार में 50 -60 रूपये प्रति किलों हिसाब से मिल जाता है , इस हिसाब से किसान एक एकड़ जमीन पर कम से कम 50000 रूपये तक खेती कर लेता है।
निष्कर्ष
हमे उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी ‘ नील की खेती कैसे करें ‘ के बारे में जानकारी सही रुप से मिल गई होगी और आपको यह पोस्ट बहुत ही पसन्द आई होगी , आप इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करें।