अब होगी आपकी भी कमाई जान लो ये जानकारी काली तोरी की खेती कैसे करे? kali troi ki kheti kaise kare.

kali troi ki kheti kaise kare काली तोरी को लूफा के नाम से जाना जाता है। काली तोरी के बेल की लंबाई 30 फुट से अधिक होती है। काली तोरी के फल बेलन के आकार के होते हैं। इस फल का बाहरी छिलका नरम हरे रंग का होता है। यह फल अंदर से सफेद रंग का निकलता है इसका स्वाद थोड़ा कड़वा करेले के समान होता है।

फलों की लंबाई 2 फुट होती है। काली तोरी के पूरी तरह पकने के बाद में उच्च मात्रा में फाइबर होता है जिसका प्रयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। शरीर की त्वचा की बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग होता है । भारत में काली तरोई को पंजाब बिहार दिल्ली उत्तर प्रदेश गुजरात हरियाणा राजस्थान झारखंड आदि राज्य में उगाया जाता है।

काली तरोई के लिए उपयुक्त तापमान या जलवायु

काली तरोई के लिए तापमान 25 से 28 डिग्री सेल्सियस तक होना चाहिए और वातावरण में शुद्धता और नमी होने चाहिए।

काली तरोई के लिए उपयुक्त मिट्टी

काली तरोई की फसल को कई किस्मों में उगाया जाता है। यह रेतीली दोमट मिट्टी में उगाया जाता है उत्पादन वृद्धि होती है मिट्टी की पीएच मान श्रमता 6 से 7 होना चाहिए। काली तरोई की फसल के लिए थोड़ी श्रारीय मिट्टी भी अच्छी होती है।

काली तरोई खेती के लिए उन्नत किस्में और पैदावार

PSG-9: काली तरोई की यह किस्म 2005 में विकसित गई है। इस किस्मत की खेती करने पर पौधे का कार हरे हरे रंग की पत्ते और लंबी बेले चलती है। इस किस्म का फल मुलायम ,नरम , गहरे हरे रंग के होते हैं। इस किस्म की फसल की कटाई 60दिनों के बाद की जाती है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

पूसा चिकनी जेड– इस किस्म के हरे रंग के पत्ते छोटे कद का पौधा और मध्यम आकार के फल होते हैं। इस किस्म का फल नरम मुलायम फोर दो से 4 सेंटीमीटर लंबाई के होते हैं।

पूसा सुप्रिया -इस किस्म की पैदावार पंजाब उत्तराखंड बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश तराई क्षेत्र में जाने के लिए सिफारिश की गई है और इसे पर की जाती है।

हालांकि अब इस साल की खेती लगभग भारत में सभी जगह की जाने लगी है और यह अच्छा खासा मुनाफा भी देती है।

काली तरोई की खेती करने के लिए जमीन की तैयारी

सबसे पहले आप अपने खेत की अच्छे से जुताई कर ले और मिट्टी को बुरभूरा और बारिक बना ले। जुदाई के समय अच्छी पैदावार के लिए गोबर खाद का उपयोग करें। फसल के उत्पादन में अच्छी गुणवत्ता के लिए 84 क्विंटल प्रति एकड़ में डालें।

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काली तरोई की बिजाई का समय या बुवाई का समय

आप साल में दो बार इस फसल की खेती कर सकते हैं और अच्छी गुणवत्ता वाली पैदावार पा सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। फसल की बुवाई का समय मध्य फरवरी और मार्च को माना गया है। दूसरी बार इस फसल को मध्य मई से जुलाई का समय उपयुक्त होता है।

काली तरोई की खेती करने के लिए बीज की मात्रा

काली तरोई के खेती करने के लिए आपको 2 किलो बीज प्रति एकड़ में डालने चाहिए।
बीज को बोने से पहले उन्हें 24 घंटे पानी में भिगो दें जिससे वह अंकुरित हो जाएंगे।

काली तरोई की खेती करने के लिए खरपतवार नियंत्रण

जब आप किसी फसल की खेती करते हैं तो आपको उसकी निराई गुड़ाई और सुरक्षा भी करनी होती है। फसल के साथ-साथ अनावश्यक खरपतवार भी उगते हैं और उन्हें भी खेत से बाहर निकालना होता है। जब आप काली तरोई की खेती करते हैं तो उसके साथ-साथ उगने वाले अनावश्यक पौधे को भी बाहर फेंकना होगा।

काली तरोई की खेती करने के लिए सिंचाई व्यवस्था

काली तोरई की खेती करते समय गर्मियों और सूखे हाल तो में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें और बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता हो तो ही करें अन्यथा नहीं करें। इसकी पहली सिंचाई बीज बोने के पहले ही की जाती है। उनकी कुछ किस्मों या फसलों 7 या 8 बार सिंचाई करने की अवश्यकता होती है।

काले तोरई के बीज उत्पादन

उत्पादन के लिए आपको काली तरोई फसल उगाने का उपयुक्त समय फरवरी से मार्च का महीना है। क्योंकि सूखे मौसम के चलते बीजों की निकालने की प्रकिया आसानी से की जा सकती है। काली तोरई के गद्दे में से बीज को बाहर निकाल लिया जाता है। और बीजो को पैक कर दिया जाता है और स्टोर कर लिया जाता है।

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